सौग़ात
यूं निकल पड़ी थी सफ़र पे मैं
नए अरमानों से भरी थी डगर!
मुझे मंज़िलों की न थी फ़िकर
मुझे रास्तों की न थी ख़बर!
जो मेरे साथ चल दिए
उन सब को....मेरी शुकर!
कुछ अपने, राह में छूट गए
है उनकी आस....हमेशा मगर।
जिनको फिर से पा लिए
वे अरमानों से दिए भर!
नए रिश्ते हुए उजागर
साथ चले वे मेरी डगर ।
राह में हमें मिले
बेगानों का दिलबर....
हमें खींच लेते हैं वो
बेबस प्यार में समेट कर।
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